पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में
पृथ्वी की आंतरिक संरचना- पृथ्वी की आंतरिक संरचना शल्कीय
है इन परतो की मोटाई का सीमांकन रसायनिक अथवा यांत्रिक विशेषताओं के आधार पर किया
जाता है पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यतः पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाले
प्रक्रियाओं के फलस्वरुप है
पृथ्वी की त्रिज्या लगभग 6370 km है इसके आंतरिक परिस्थितियों की वजह
से कोई पृथ्वी के केंद्र तक पहुंचकर उसका निरीक्षण तथा नमूना किसी पदार्थ का
प्राप्त कर सकें, इसके आंतरिक
संरचना के संदर्भ में हमारी ज्यादातर जानकारी और अनुमानों पर आधारित है
खनन
खनन प्रक्रिया से धरातलीय चट्टानों की जानकारी प्राप्त होती
है अभी तक का सबसे गहरा प्रवेधन आर्कटिक महासागर में कोयला क्षेत्र में 12 km की गहराई तक किया गया है अधिक गहराई
पर तापमान भी अधिक बढ़ता जाता है इस कारन अधिक गहराई में जाना संभव नहीं है
ज्वालामुखी
ज्वालामुखी प्रत्यक्ष जानकारी का एक स्रोत है
तापमान/घनत्व/दबाव
पृथ्वी की कुल मोटाई को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने
विभिन्न गहराइयों पर पदार्थ के तापमान दबाव एवं घनत्व के मान को अनुमानित किया है
जिससे उन्हें प्रत्यक्ष परत की जानकारी प्राप्त हुई अप्रत्यक्ष स्रोत के रूप में
वैज्ञानिक दबाव तापमान घनत्व की मदद लेते हैं
उल्का पिंड
उल्काए पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का दूसरा (2nd) अप्रत्यक्ष स्रोत है जो कभी- कभी धरती
तक पहुंच जाते हैं
गुरुत्वाकर्षण
पृथ्वी के केंद्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों
पर अधिक और भूमध्य रेखा पर कम होता है विभिन्न स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण की
भिन्नता अनेक अन्य कारकों से भी प्रभावित होती हैं
भूकंपीय तरंगे
भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक परतों का
संपूर्ण चित्र प्रकट करता है Seismograph
सतह पर पहुंचने वाली भूकंपीय तरंगों को मापता है
भूकंपीय तरंगे दो तरह की होती है
१. भूगर्भिक तरंगे- उद्गम क्षेत्र से ऊर्जा विमुक्त होने के
समय भूगार्भिक तरंगे उत्पन्न होती हैं, भूगर्भिक तरंगे भी दो तरह की होती है
01. P तरंगे-
• P तरंगे तीव्र
गति से चलती हैं तथा धरातल पर सबसे पहले पहुंचती हैं
• P तरंगे गैस, तरल व ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों
से होकर गुजर सकती है
02. S तरंगे-
• S तरंगे धरातल पर कुछ समय पश्चात पहुंचती हैं
• S तरंगे केवल ठोस
पदार्थ के ही माध्य से चलती हैं
२. धरातलीय तरंगे- भूगर्भिक तरगों एवं धरातलीय शैलों के
मध्य अन्योन्य क्रियाओं के कारण नई तरंगे उत्पन्न होती हैं जिन्हें धरातलीय तरंगे
कहां जाता है, धरातलीय तरंगे
धरातल के साथ साथ चलती हैं
भू-पर्पटी
1. पृथ्वी के ऊपरी क्षेत्र को भू-पर्पटी कहते हैं
2. भू-पर्पटी का निर्माण सिलिका (Si) और एलमुनियम (Al) से हुआ है, इसलिए इस परत को सियाल कहा जाता है
3. महाद्वीपों के नीचे भू-पर्पटी की मोटाई 30 Km तक है
4. यह बहुत भंगुर भाग है जिसमें शीघ्र टूटे जाने की प्रवृति
देखी जाती है
5. इस परत को लिथोस्फीयर भी कहा जाता है
6. महाद्वीपों में भू-पर्पटी की मोटाई महासागरों की तुलना
में अधिक है
7. महासागरों के नीचे भू-पर्पटी की औसत मोटाई लगभग 5
किलोमीटर तक होती है
8. पर्वतीय श्रृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटाई और अधिक
होती है
9. हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के नीचे भू-पर्पटी की मोटाई
लगभग 70 किलोमीटर है
मैंटल
1. भू-पर्पटी के नीचे वाले भाग को मैंटल कहते हैं
2. यह 2900 किलोमीटर की गहराई तक पाया जाता है
3. इस परत को पाइरोस्फीय भी कहा जाता है
4. पृथ्वी के आयतन का 83% तथा द्रव्यमान का 67% भाग ही होता
है
5. मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मंडल कहा जाता है
6. यही भाग ज्वालामुखी उद्गार के समय धरातल पर पहुंचने वाले
लावा का मुख्य स्रोत है
7. मैंटल का निर्माण सिलिका (Si) और मैग्नीशियम (Mg) से हुआ है
8. दुर्बलता मंडल का विस्तार 400 किलोमीटर तक देखा गया है
9. निचला मैंटल ठोस अवस्था में होता है
क्रोड
• क्रोड का
निर्माण निकल व लोहे से होता है,
क्रोड को दो भागों में विभाजित किया जाता है
• बाह्रय क्रोड (Outer core)- बाह्रय क्रोड
तरल अवस्था में होता है
• आंतरिक क्रोड (Inner core)- आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में होता है