ट्रांसफार्मर या परिणामित्र क्या है और उनका उपयोग - what is a transformer and its use


01. ट्रांसफॉर्मर का प्रयोग किसके नियन्त्रित करने में होता है?
उत्तर – धारा


ट्रांसफार्मर या परिणामित्र क्या है (What is a Transformer)
ट्रान्सफार्मर एक ऐसा विद्युत यंत्र है जो कि AC सप्लाई की फ्रीक्वेंसी को बिना बदले, वोल्टता को कम या ज्यादा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, इसका इस्तेमाल उन DC उपकरण पर किया जाता है जोकि AC सप्लाई द्वारा चलाए जाते हैं 
जैसे - एंपलीफायर, बैटरी चार्जर इत्यादि


ट्रान्सफार्मर या परिणामित्र के बारे में मुख्य पॉइंट – 
• सबसे पहले ट्रांसफार्मर का आविष्कार Michael Faraday ने 1831 और Joseph Henry ने 1832 में करके दिखाया था
• DC उपकरण AC उपकरण के मुकाबले बहुत कम बिजली से चलते हे
• रेक्टिफायर की मदद से AC से DC में बदला जाता है
• ट्रान्सफार्मर या परिणामित्र एक वैद्युत मशीन है जिसमें कोई चलने या घूमने वाला अवयव नहीं होता।
• ट्रांसफॉर्मर एक-फेजी, तीन-फेजी या बहु-फेजी होते है
• किसी ट्रान्सफार्मर में एक या दो या उससे अधिक वाइन्डिंग हो सकती हे
• ट्रान्सफार्मर का मुख्य उपयोग - जहाँ, जैसी आवश्यकता हो विद्युत शक्ति को अधिक वोल्टता से कम वोल्टता में या कम वोल्टता से अधिक वोल्टता में बदलना है
• ट्रांसफॉर्मर एक स्थैतिक मशीन है।
• सिलिकॉन स्टील की कोर कम आवृत्ति के वाले ट्रांसफॉर्मर में प्रयुक्त होती है। उच्च आवृति (10 किलोहर्ट्ज से सैकड़ों किलोहर्ट्ज) के ट्रांसफॉर्मर फेराइट की कोर का प्रयोग करते हैं। बिना कोर के भी ट्रांसफॉर्मर बनाया जा सकता है (वायु-क्रोड ट्रांसफॉर्मर)।
• ट्रांसफॉर्मर डीसी के साथ काम नहीं कर सकता क्योंकि समय के साथ फ्ल्क्स का परिवर्तन नहीं होता। 220 वोल्ट के ट्रांसफॉर्मर को एक-दो वोल्ट भी डीसी देने से उसकी प्राइमरी में बहुत अधिक धारा बहेगी और वह जल सकता है।
• यदि कोई ट्रांसफॉर्मर f1 आवृत्ति एवं V1 वोल्टता के लिए डिजाइन किया गया है किन्तु उसे f2 आवृत्ति तथा V1 वोल्टता पर चलाया जाता है तो -
• ट्रांसफॉर्मर सैचुरेट होकर, अधिक धारा लेकर, गरम होकर जल सकता है यदि f2 < f1 .


• ट्रांसफॉर्मर को कोई खास समस्या नहीं होगी यदि, f2 > f1 . (किन्तु यदि f2 बहुत अधिक हो तो अच्छा यह होगा कि उच्च आवृत्ति का कोर प्रयोग करते हुए उसके अनुसार ट्रांसफॉर्मर डिजाइन किया जाय।)
• किसी ट्रांसफॉर्मर की दक्षता उस लोड पर सबसे अधिक होती है जिस लोड पर लौह-क्षति (iron loss) तथा ताम्र-क्षति (copper loss) बराबर हो जाँय।
• ट्रांसफॉर्मर के कोर में दो तरह की ऊर्जा-क्षति होती है - भंवर-धारा क्षति (एड्डी-करेंट लॉस) तथा हिस्टेरिसिस क्षति। कोर को पतली-पतली पट्टियों (लैमिनेटेड) से बनाने से भँवर-धारा क्षति कम होती है। (इन पट्टियों की सतह पर इंसुलेटिंग परत होती है।)
• ट्रांस्फॉर्मर में जरूरी नहीं कि दो ही वाइंडिंग हों। प्रायः तीसरी, चौथी वाइंडिंग भी होतीं हैं। आटोट्रांसफॉर्मर में एक ही वाइंडिंग होती है।
• वैरियक (variac) एक आटोट्रांसफॉर्मर है जिसमें इनपुट और आउटपुट टर्न्स का अनुपात नियत (fixed) नहीं होता बल्कि सतत रूप में बदला जा सकता है। इसके लिए ब्रश के द्वारा एक चलित-सम्पर्क (moving contact) बनाया गया होता है।
• आटोट्रांसफॉर्मर, समान रेटिंग के दो वाइंडिंग वाले ट्रांसफॉर्मर से छोटा और सस्ता होता है।


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