भक्ति आन्दोलन क्या है? | भक्ति आन्दोलन के प्रमुख सन्त (Bhakti Movement)


भक्ति आन्दोलन क्या है?
भक्ति आन्दोलन मध्याकालीन भारत का सांस्कृ्तिक इतिहास में एक महत्वनपूर्ण पड़ाव था, इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों की धारा द्वारा समाज विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया गया, सिख धर्म के उद्भव में भक्ति आन्दोलन की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है


भक्ति आन्दोलन के प्रमुख सन्त (Major Saints of Bhakti Movement)
• अलवर (लगभग २री शताब्दी से 2वीं शताब्दी तक; दक्षिण भारत में)
• नयनार (लगभग 5वीं शताब्दी से 10वी शताब्दी तक; दक्षिण भारत में)
• आदि शंकराचार्य (788 ई से 820 ई)
• रामानुज (1017 - 1137)
• बासव (१२वीं शती)
• माध्वाचार्य (1238 - 1317)
• नामदेव (1270 - 1309 : महाराष्ट्र)
• एकनाथ - गीता पर भाष्य लिखा : विठोबा के भक्त
• सन्त ज्ञानेश्वर (1275 - 1296 : महाराष्ट्र)
• जयदेव (12वीं शताब्दी)


• निम्बकाचार्य (13वीं शताब्दी)
• रामानन्द (15वीं शती)
• कबीरदास (1440 - 1510)
• दादू दयाल (1544-1603 : कबीर के शिष्य थे)
• गुरु नानक (1469 - 1538)
• पीपा (जन्म 1425)
• पुरन्दर (15वीं शती; कर्नाटक)
• तुलसीदास (1532 - 1623)
• चैतन्य महाप्रभु (1468 - 1533 : बंगाल में)
• शंकरदेव (1449 - 1569 : असम में)
• वल्लभाचार्य (1479 - 1531)
• सूरदास (1483 - 1563 : बल्लभाचार्य के शिष्य थे)
• मीराबाई (1498 - 1563 : राजस्थान में : कृष्ण भक्ति)
• हरिदास (1478 - 1573 : महान संगीतकार जिहोने भगवान विष्णु के गुण गाये)
• तुकाराम (शिवाजी से समकालीन : विठल के भक्त)
• समर्थ रामदास (शिवाजी के गुरू : दासबोध के रचयिता)
• त्यागराज (मृत्यु 1847)
• रामकृष्ण परमहंस (1836 - 1886)
• भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद (1896 - 1977)

भक्ति आन्दोलन की कुछ विशेषताएँ (Some features of Bhakti movement)
• यह आन्दोलन न्यूनाधिक पूरे दक्षिणी एशिया (भारतीय उपमहाद्वीप) में फैला हुआ था
• यह लम्बे काल तक चला
• इसमें समाज के सभी वर्गों (निम्न जातियाँ, उच्च जातियाँ, स्त्री-पुरुष, सनातनी, सिख, मुसलमान आदि) का प्रतिनिधित्व रहा








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