मिट्टी से संबंधित प्रश्न | Soil Related Questions | Soil GK | Soil Question


मिट्टी से संबंधित प्रश्न | Soil Related Questions

भारत में 8 प्रकार की मिट्टियों : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Agricultural Research) के अनुसार
(i)  पर्वतीय मिट्टी
(ii)  जलोढ़ मिट्टी
(iii)  काली मिट्टी
(iv)  लाल मिट्टी
(v)  लैटेराइट मिट्टी
(vi)  मरूस्थलीय मिट्टी
(vii)  पीट एवं दलदली मिट्टी
(viii)  लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी

मिट्टी : मिट्टी के अध्ययन को पेडोलॉजी कहते है

पर्वतीय मिट्टी :
• पर्वतीय मिट्टी मुख्य रूप से पहाड़ी ढलानों में पाई जाती है
• ये वुडलैंड्स और जंगलों से कार्बनिक पदार्थों के जमाव द्वारा बनती हैं
• इस मिट्टी में चाय, कॉफी और मसालों की खेती की जाती है
• यह मिट्टी ज्यादातर हिमालयी क्षेत्रों, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में और प्रायद्वीप, पूर्वी घाट और सह्याद्रि का शिखर में पाए जाते हैं


जलोढ़ मिट्टी (एलूवियल सॉइल) :
• जलोढ़ मिट्टी भारत के लगभग 22 % क्षेत्रफल पर पाई जाती है 
• यह नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टी होती है 
• इस मिट्टी में पोटाश की बहुलता होती है, लेकिन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और ह्यूमस की कमी होती है
• जलोढ़ मिट्टी को उर्वरता की दृष्टीकोण से काफी अच्छी मानी जाती है, इसमें धान, गेंहू, मक्का, तिलहन, दलहन आदि फसलें उगाई जाती हैं

जलोढ़ मिट्टी 2 प्रकार की होती है : 
(i)  बांगर (Bangar) - नयी जलोढ़ मिट्टी को खादर कहते है
(ii)  खादर (Khadar) - पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर कहते है 

काली मिट्टी (ब्लैक सॉइल) : 
• काली मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के टूटने-फूटने से होता है
• काली मिट्टी में आयरन, चूना, एल्युमीनियम जीवांश और मैग्नीशियम की बहुलता होती है
• इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) की उपस्थिति के कारण होता है
• काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है
• काली मिट्टी कपास की खेती के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है इसलिए इसे काली कपास की मिट्टी यानी ब्लैक कॉटन सॉइल भी कहा जाता है और अन्य फसलों में गेंहू, ज्वार, बाजरा आदि को उगाया जाता है


लाल मिट्टी (रेड सॉइल) :
• लाल मिट्टी का निर्माण जल वायु परिवर्तन की वजह से रवेदार और कायांतरित शैलों के विघटन और वियोजन से होता है होता है
• लाल मिट्टी का लाल रंग आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है, लेकिन जलयोजित रूप में यह पीली दिखाई देती है
• लाल मिट्टी अम्लीय प्रकृति की मिट्टी होती है, इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और ह्यूमस की कमी होती है
• यह मिट्टी उर्वरता विहीन बंजर भूमि के रूप में पाई जाती है
• इस मिट्टी में कपास, गेंहू, दालें और मोटे अनाजों की खेती की जाती है
• चूने का इस्तेमाल कर लाल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है
• यह मिट्टी भारत के आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग, छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के उत्तरी पश्चिम जिलों, मेघालय की गारो खासी और जयंतिया के पहाड़ी क्षेत्रों, नागालैंड, राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ भागों में पाई जाती है

लैटेराइट मृदा (Laterite soil) :
• 'लैटेराइट मिट्टी' का निर्माण ऐसे भागों में हुआ है, जहाँ शुष्क व तर मौसम बार-बारी से होता है। 
• यह लेटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से बनती है। 
• यह मिट्टी चौरस उच्च भूमियों पर मिलती है। 
• इस मिट्टी में लोहा, ऐल्युमिनियम और चूना अधिक होता है। 
• गहरी लेटेराइट मिट्टी में लोहा ऑक्साइड और पोटाश की मात्रा अधिक होती है। 
• लौह आक्साइड की उपस्थिति के कारण प्रायः सभी लैटराइट मृदाएँ जंग के रंग की या लालापन लिए हुए होती हैं।
• लैटराइट मिट्टी, चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है, क्योकि यह मिट्टी अम्लीय होती है। 
• लैटराइट मिट्टी वाले क्षेत्र अधिकांशतः कर्क रेखा तथा मकर रेखा के बीच में स्थित हैं। 


मरुस्थलीय मिट्टी :
• मरुस्थलीय मिट्टी कम वर्षा वलो शुष्क क्षेत्रों में मिलती है। 
• यह मिट्टी मुख्य रूप से मरुस्थलीय मैदानों में पाई जाती है। 
• इस मिट्टी में सामान्यत: ह्यूमस का अभाव होता है। 
• इस प्रकार की मिट्टी में मोटे अनाजों की कृषि की जाती है। मोटे अनाजों में प्राय: ज्वार, बाजरा, रागी तथा तिलहन आदि पैदा किया जाता है।
• इस मिट्टी कस विस्तार पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, दक्षिणी पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भू-भागों पर है

पीट एवं दलदली मिट्टी :
• दलदली क्षेत्रों में अधिक मात्रा में जैविक पदार्थों में जमा हो जाने से इस मिट्टी का निर्माण होता है।
• पीट या जैविक मिट्टी भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त क्षेत्रों में पाई जाती हैं। 
• इन मिट्टियों में वनस्पति की अच्छी बढ़वार होती है।
• इस प्रकार की मिट्टी काली, भारी एवं अम्लीय होती हे।
• बिहार का उत्तरी भाग, उत्तराखंड के दक्षिणी भाग, बंगाल के तटीय क्षेत्रों, उड़ीसा और तमिलनाडु में ये मृदाएँ अधिकांशत: पाई जाती हैं।
• ये मृदाएँ हल्की और कम उर्वरक का उपभोग करने वाली फ़सलों की खेती के लिए उपयुक्त हैं।
• जल की मात्रा कम होते ही इस मिट्टी चावल की कृषि की जाती है।
• तराई प्रदेश में इस मिट्टी में गन्ने की भी कृषि की जाती है।


क्षारीय मिट्टी :
• क्षारीय मिट्टी शुष्क एवं अर्धशुष्क भागों एवं दलदली क्षेत्रों में मिलती है। 
• इसकी उत्पत्ति शुष्क एवं अर्धशुष्क भागों में जल तल के ऊँचा होने एवं जलप्रवाह के दोषपूर्ण होने के कारण होती है। 
• ऐसी स्थिति में केशिकाकर्षण की क्रिया द्वारा सोडियम, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के लवण मृदा की ऊपरी सतह पर निक्षेपित हो जाते हैं।
• समुद्र तटीय क्षेत्रों में ज्वार के समय नमकीन जल भूमि पर फैल जाने से भी इस मृदा का निर्माण होता है।
• प्रायः यह मिट्टी उर्वरता से रहित होती है जबकि जीवांश आदि नहीं मिलते है। ऐसी मृदा में नाइट्रोजन की कमी होती है।
• यह एक अंतःक्षेत्रीय मिट्टी है, जिसका विस्तार सभी जलवायु प्रदेशों में पाया जाता है।
• यह मिट्टी मुख्यतः दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, गंगा के बायें किनारे के क्षेत्र, केरल तट, सुंदरवन क्षेत्र सहित वैसे क्षेत्रों में भी पाई जाती है
• यह एक अनुपजाऊ मृदा है।
• तटीय क्षेत्रों में इस मृदा में नारियल एवं तेल ताड़ की कृषि की जाती है।


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